गुरुवार, २३ नोव्हेंबर, २०२३

आंबेडकर म्हणतात -

मनाचे स्थैर्य आणि नीरक्षीरविवेक म्हणजे काय याचा उत्तम नमूना-

`मै मानता हूँ की, इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं हो सकता है की, अचल संपत्ति के बंटवारे पर नियंत्रण अपनाया जाता है तो, हमारी कृषि पर आधारित जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भूमिहीन हो जायेगा. यह देश के सर्वाधिक हित में नहीं है की, गरीब तबकों को इस ढंग से और गरीब कर दिया जाए. महोदय, मै यह बताना चाहता हूँ की, यद्यपि हिन्दू कानून कई तरह से बहुत त्रुटीपूर्ण है, तथापि उत्तराधिकार का हिन्दू कानून लोगों का बहुत बड़ा रक्षक रहा है. हिन्दू धर्म द्वारा स्थापित सामाजिक और धार्मिक एकछत्रवाद ने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को निरंतर दासता में जकड़े रखा है. यदि इस दासता में भी उनकी दशा सहनीय है तो इस कारण से की, उत्तराधिकार के हिन्दू कानून ने कुबेरपतियों के निर्माण को रोका है. महोदय, हम सामाजिक दासता को आर्थिक गुलामी से नहीं जोड़ना चाहते. यदि आदमी सामाजिक रूप से स्वतंत्र नहीं है, तो उसे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने दीजिए. इसलिए मै उस न्यायपूर्ण और उत्तराधिकार की समतामूलक व्यवस्था को समाप्त करने के पूर्णतया खिलाफ हूँ.' (डॉ. आंबेडकर समग्र साहित्य, खंड ३, पृष्ठ १४८- मुंबई विधिमंडळात १० ऑक्टोबर १९२७ रोजी `छोटे किसान राहत विधेयक' यावर केलेले भाषण)

या छोट्याशा वेच्यावर स्वतंत्रपणे लिहिता येईल. ते पुन्हा केव्हा तरी.

#श्रीपादचीलेखणी

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