कल मा. प्रधानमंत्री जी को मेरे कुछ विचार भेजे. वही सभी को प्रेषित कर रहा हूँ.
मा. प्रधानमंत्री जी,
सादर प्रणाम...
अपने देश और समाज के संबंध में मेरे कुछ सुझाव और सूचनाएं आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ. आशा करता हूँ की, आप उसका उचित संज्ञान लेंगे.
१) भारत को बहुत अच्छा भारत बनाइयें. लेकिन कृपया, अपने भारत को अमरिका, जापान, चीन, जर्मनी, यूके, रशिया या ऑस्ट्रेलिया ना बनायें.
२) हमारी हजारो समस्याएं है. (आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, आंतरिक और बाह्य सुरक्षा से सम्बंधित) केवल एक उपाय कर के इन्हें कमसे कम ५०% तक कम किया जा सकता है. वह है हमारे गावों और शहरों की पुनर्रचना. एक लाख जनसंख्या के १५ हजार शहर विकसित किये जाएँ. आनेवाले २५ वर्ष की जनसंख्या भी उसमे समा सकेगी.
३) इससे, बड़े विशाल शहरों की समस्याओं और छोटे कसबों की समस्याओं से मुक्त होने के साथ ही आधुनिकता के मधुर फल सबको प्राप्त होंगे.
४) मानसिकता में आमूलचूल अच्छा परिवर्तन होगा. आवागमन की पद्धती बदल जाएगी और कच्चे तेल (जिसके लिए हमे दूसरों पर निर्भर रहना ही है) की समस्या प्रचुर मात्रा में कम होगी. जैसे दैनंदिन जीवन में सायकल का उपयोग हो सकता है. वह व्यावहारिक भी होगा और उसे प्रतिष्ठा भी मिल सकेगी. साथ ही सृष्टि माँ का पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.
५) उर्जा के संबंध में मनुष्य और पशु उर्जा का भी उपयोग होना चाहिए. ५-१० किमी अंतर में बैल, गधे, घोड़े आदि का उपयोग हो सकता है. उसमे अमानवीयता ना हो इसका ध्यान रखना होगा.
६) सारे १५ हजार शहर जितनी मात्रा में आत्मनिर्भर हो सकते है, होने चाहिए.
७) पर्यटन विकास में धर्म, इतिहास और निसर्ग के साथ ही, कला- साहित्य आदि का भी विचार हो.
८) शिक्षा और स्वास्थ्य की सारी सुविधाएं और संस्थान तहसील स्थान पर विकसित हो और स्थानांतरित हो.
९) सांसदों, विधायकों के क्षेत्र विकास निधि बंद कर के, उनका एकीकृत और सार्थक उपयोग हो. साथ ही एक ही टाकी पर बहुत सारे नल लगे हो और उनमे से बड़ी मात्रा में पानी बह रहा हो ऐसी आज स्थिति है. इसलिए बहुत सारी योजनाओं के नल बंद करके उनका निधि भी एकीकृत रीती से और सार्थक रूप में कामों में लगे.
१०) अच्छा जीवन जीने के साथ साथ- अच्छी संकल्पनाएँ, अच्छे विचार, अच्छा चिंतन, अध्यात्म समाज में बोया जाएँ, ये चीजे फले-फुले और संपन्नता के साथ ही सुसंस्कृत समाज का निर्माण हो.
११) हमारी विदेश निति में भी वस्तुएं और सेवाओं के साथ ही संकल्पनाएँ, विचार, चिंतन, अध्यात्म विदेशों में कैसे पहुँचाया जाएँ इसका ध्यान रखा जाय.
आप को विनम्र नमस्कार और धन्यवाद.
- श्रीपाद कोठे
२७ जून २०१४
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